चंबल बीहड के आत्मसमर्पित दुर्दांत पूर्व दस्यु मोहर सिंह की म्रुत्यु, जिसके गिरोह पर था 12 लाख का इनाम, किये थे 80 से ज्यादा मर्डर

मोहर सिंह यह नाम चंबल क्या डकैतों की दुनिया में बडा ही खौफनाक रहा है 1958 में पहला अपराध कर पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज होने वाले मोहर सिंह ने जब अपने कंधें से बंदूक उतारी तब तक वो पुलिस डिपार्टमेंट के ऑफिशियल रिकॉर्ड में दो लाख रुपए का इनामी हो चुका था और उसके गैंग पर 12 लाख रुपए का इनाम था.


भिंड :आज पूर्व दस्यु सरदार मोहर सिंह गुर्जर का निधन हो गया है. 92 साल के मोहर सिंह ने आज सुबह अंतिम सांस ली वो लंबे समये से बीमार थे. 60 के दशक के इस दस्यु सरदार के खिलाफ पुलिस रिकॉर्ड में 350 अपराध दर्ज थे. गिरफ्तारी पर उस वक्त 2 लाख रुपए का इनाम घोषित था    150 लोगों  के  गिरोह पर 12 लाख कुल इनाम सरकार ने रखा था ,अपराध की दुनिया छोड़ने के बाद वो गरीबों की मदद और गरीब कन्याओं की शादी कराने के लिए मशहूर हुए थे
पूर्व दस्यु सम्राट मोहर सिंह ने आज सुबह 8:55 बजे अपने घर पर 92 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली. चंबल में पचास के दशक में जैसे बागियों की एक पूरी बाढ़ आई थी. चम्बल में खूंखार डकैतों में एक नाम ऐसा उभरा जिसने बाकी सबको पीछे छोड़ दिया ये नाम था मोहर सिंह 



बीह़ड भी जिससे कांपते थे



चंबल के बीहड़ों ने जाने कितने डाकुओं को पनाह दी. सैंकड़ों गांवों की दुश्मनियां चंबल में पनपी होंगी और उन दुश्मनियों से जन्में होंगे डकैत. लेकिन एक दुश्मनी की कहानी ऐसी बनी कि उससे उपजा डकैत चंबल में आतंक का नाम बन बैठा. ऐसा डकैत जिसके पास डाकुओं की सबसे बड़ी फौज खड़ी हो गई
 डकैत मोहर सिंह मेहगांव से पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष भी रह चुके हैं चंबल घाटी में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान की पुलिस फाइलों में उसका नाम E-1 यानि दुश्मन नंबर एक के तौर पर दर्ज था. साठ के दशक में उसका ऐसा आतंक फैल चुका था कि लोग कहने लगे थे कि चंबल में मोहर सिंह की बंदूक ही फैसला थी और मोहर सिंह की आवाज ही चंबल का कानून



ऐसा था नेटवर्क



चंबल में पुलिस की रिकॉर्ड की बात करें तो 1958 में अपराध की शुरूआत करने वाले मोहर सिंह ने इतना आतंक मचा दिया था कि सब खौफ खाने लगे थे. एनकाउंटर में मोहर सिंह के साथी आसानी से पुलिस को चकमा देकर निकल जाते थे. उसका नेटवर्क इतना बड़ा था कि पुलिस के चंबल में पांव रखते ही उसको खबर हो जाती थी और मोहर सिंह अपनी रणनीति बदल देता था



अपराध का लंबा सफर



1960 के दशक की चंबल घाटी से संबंध


चंबल घाटी में जब मान सिंह राठौर, तहसीलदार सिंह (मानसिंह और तहसीलदार पिता-पुत्र), डाकू रूपा, लाखन सिंह, गब्बर सिंह, लोकमान दीक्षित उर्फ लुक्का पंडित, माधो सिंह (माधव), फिरंगी सिंह, देवीलाल, छक्की मिर्धा, रमकल्ला और स्योसिंह (शिव सिंह) जैसे खूंखार बागी-गैंग (डकैत और उनके गिरोह) अपने चरम या फिर खात्मे (उतार/ समाप्ति) की ओर थे. डाकू फिरंगी सिंह, देवीलाल और उसका पूरा गिरोह, छक्की मिर्धा और गैंग, स्यो सिंह और रमकल्ला मारे जा चुके. उसी वक्त सन् 1958 में एक नौसिखिया मगर उस जमाने का सबसे ज्यादा खतरनाक और खून-खराबे पर उतरा बागी (डाकू) मोहर सिंह चंबल के बीहड़ में बंदूक लेकर कूदा था. पुराने गैंगों की चिंता किए बिना मोहर सिंह ने 150 से ज्यादा खूंखार डाकूओं को अपना गिरोह चंबल घाटी में उतार दिया.


 चंबल का बीहड़ और जिंदगी का वो पहला कत्ल


इतिहास गवाह है कि, चंबल की जमीं ने अपने घने कांटेदार बबूल के साए में सैकड़ों डाकूओं को पनाह दी. चंबल घाटी ने अनगिनत दुश्मन पहले तो पाल-पोसकर बड़े किए. फिर उन्हीं दुश्मनों ने दुश्मन और दुश्मनी को बंदूकों के बलबूते नेस्तनाबूद करके चंबल की गहरी डरावनी घाटियों में हमेशा-हमेशा के लिए जमींदोज कर दिए. फिर भला ऐसी श्रापित चंबल के असर से कभी गांव के अखाड़े में अल-सुबह ‘जोर’ (पहलवानी) करने वाला बीते कल का हट्टा-कट्टा गबरू जवान मोहर सिंह गुज्जर भी कैसे बच पाता?  भिंड जिले के मेहगांव में रह रहे चंबल घाटी के इस पूर्व बागी ने एक पुराने इंटरव्यू के दौरान बताया कि  ""हमारी पुश्तैनी जमीन को लेकर कुछ लोगों ने उन्हें पीट दिया बदले में मोहर सिंह ने दुश्मन को गोलियों से भून डाला'' इसके बाद बंदूक उठाई और बागी होकर चंबल के जंगल में कूद गया 


फिर यही मोहर सिंह गुर्जर उस एक अदद कत्ल की बदौलत चंबल घाटी के उस वक्त के सबसे खूंखार डाकू मानसिंह राठौर के बाद दूसरे नंबर के क्रूर बागी की कुर्सी पर काबिज हो गया.



वो बंदूक जिसने चंबल में कोहराम मचा दिया


चंबल में मोहर सिंह की बंदूक गरजी तो उसकी आवाज से तीन राज्यों (उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य-प्रदेश) की पुलिस के कान बहरे होने लगे. पुलिस चंबल में एक ओर मोहर गैंग से लोहा ले रही होती, तब तक गैंग के दूसरे सदस्य चंबल के ही किसी और कोने में पुलिस वालों को ढेर करके जा चुका होता. यूं तो चंबल घाटी में मौजूद तमाम गिरोह के सरगनाओं के कानों में भी मोहर सिंह गैंग के हथियारों की तड़तड़ाहट पहुंची, मगर मोहर सिंह गैंग का लोहा सबसे पहले माना चंबल में उस वक्त दो नंबर की कुर्सी पर काबिज माधो सिंह (माधव उर्फ माधो सिंह पूर्व फौजी बागी) ने. माधो-मोहर गैंग की दोस्ती ने चंबल के बीहड़ में कहर बरपा कर पुलिस के होश फाख्ता कर दिए.


कत्ल कम किये, पुलिस ने मोहर के सिर ज्यादा मढ़ दिए


मोहर सिंह के मुताबिक बागी रूप में चंबल के जंगल में रहते हुए उन्होंने और उनके गैंग ने ज्यादातर पुलिस वाले और पुलिस-मुखबिर ही गोलियों से भूने थे.   उनका कहना था कि अब कत्लों की सही संख्या तो याद नहीं, मगर 15-20 हत्याओं की याद है मोहर सिंह को. जबकि पुलिस रिकॉर्ड में मोहर सिंह और उनके गैंग के नाम 80 से ज्यादा हत्याएं और 350 से ज्यादा लूट. अपहरण, डकैतियां और हत्या की कोशिशों के मामले दर्ज रहे हैं


डाकू, जिसकी गोली ‘फैसला’ और आवाज ‘कानून’ बनी!


चंबल के दिनो की यादों को बांटते हुए मोहर सिंह ने बताया था  कि, ‘जब मैं चंबल में कूदा उस वक्त उम्र बहुत कम थी. उम्र के हिसाब से समझ भी कम रही. अगर यह कहूं कि ‘दिमाग’ से जीरो और दिलेरी में हीरो था तो गलत नहीं होगा. सोचा कि घाटी में किसी बड़े गैंग में पहले शामिल होकर महारत हासिल कर लूं, मगर किसी गैंग ने नौसिखिया और छुटभैय्या होने के कारण सीधे मुंह बात नहीं की. बाद में उस जमाने में 150 आदमी का अपना खुद का गैंग खड़ा कर दिया. मोहर सिंह गैंग पर उस समय का सबसे ज्यादा 12 लाख इनाम पुलिस ने घोषित कर दिया. मेरे सिर पर दो लाख का इनाम घोषित करके पुलिस ने मुझे चंबल का सबसे महंगा वांछित/भगोड़ा डाकू (बागी) बना डाला. बस इस सबके बाद ही बाकी बागी और उनके गिरोह की समझ में आ गया कि, चंबल के जंगल में अब मोहर सिंह की आवाज ही फैसला होगी और मोहर सिंह गैंग की बंदूकों की गोली चंबल का कानून होगा.’



पूर्व के एक इंटरव्यू के दौरान चंबल बीहड़ के इस पूर्व खूंखार दस्यु सरगना ने कहा था कि, ‘मैं आज तक जिंदा बचा हुआ हूं या मेरा गैंग कभी भी पुलिस की गोलियों की भेंट चढ़कर नेस्तनाबूद नहीं हो सका. इसकी एक प्रमुख वजह है कि, मैंने और मेरे गैंग ने कभी भी किसी औरत (मां-बहन-बेटी) के साथ बदसलूकी नहीं की. गैंग के सदस्यों को हिदायत थी कि, जो भी बागी/डाकू किसी औरत के संपर्क में जाएगा उसे गोली से उड़ा दिया जाएगा. आज भी मेरा नाम समाज में लोग इसी वजह से इज्जत के साथ लेते हैं.’


चंबल का पन्ना जो मोहर से पहले कोई नहीं लिख सका


चंबल घाटी के अच्छे-बुरे इतिहास में एक पन्ना जोड़ने का पूरा श्रेय बीते कल के इसी खूंखार डाकू मोहर सिंह और उसके साथी डाकू नाथू सिंह को जाता है.


मोहर के मुताबिक, - ‘चंबल घाटी में डाकू/बागी सैकड़ों आए-गए. किसी भी गैंग या डाकू सरगना ने मगर चंबल के बीहड़ में बैठकर दिल्ली के किसी रईस की ‘पकड़’ (अपहरण) करने की हिम्मत कभी नहीं जुटाई. मैंने उस जमाने के दिल्ली कुख्यात चोरी की मूर्तियों के तस्कर को प्लानिंग के तहत डाकू नाथू सिंह के साथ मिलकर (सन् 1972 में सरेंडर के बाद डाकू नाथू सिंह ग्वालियर जेल में मोहर सिंह के साथ कैद भी रहे) दिल्ली से  ग्वालियर (हवाई जहाज से) बुलाया. फिर ग्वालियर से चंबल के बीहड़ में बुलाकर बंधक बना लिया. चंबल के इतिहास में ऐसा अपहरण पहले कभी नहीं हुआ न आज तक भी कोई कर पाया है. 26 लाख फिरौती वसूलने के बाद ही उस मूर्ति तस्कर और उसके साथी को जंगल से रिहा किया था
लेकिन अचानक ही इस खूंखार डाकू ने, जयप्रकाश नारायण के कहने पर आत्म समर्पण कर दिया था