कोरोना, इम्यूनिटी और वैश्विक मयखाने में तब्दील

 


एक सर्वे के अनुसार भारत में 16 करोड़ नियमित शराबी है जाहिर है 40 दिन की तलब सड़कों पर आनी ही थी



कोरोना संकट,


जनतंत्र गाथा


राजवर्धन सिंह  (आलेख)



दिल्ली में शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़ के निहितार्थ समझना ज्यादा मुश्किल नही है।असल मे शराब एक कुबेर का खजाना है सरकारों,अफसरों,और ठेकेदारों के लिए।
भारत आज दुनियां का सबसे बड़ा शराब बाजार है।यानी सबसे ज्यादा शराबी हम है।कभी हमारी समाज व्यवस्था में शराब को हेय दृष्टि से देखा जाता था लेकिन आज नई आर्थिकी के साथ पैदा हुई तथाकथित समाजव्यवस्था ने शराब को स्टेटस सिंबल बना लिया है।समाज और सरकार दोनों की सहमति से आखिर हम कैसे आधुनिक भारत के निर्माण में लगे है?
कोरोना वायरस शराब पीने से मर जाता है यह अफवाह भारत मे इतनी तेजी से फैली थी की सरकार और अब डब्ल्यू एच ओ तक को यह एडवाइजरी जारी करनी पड़ी की शराब से कोई वायरस नही मरता है ।यह शरीर के लिए हर स्थिति में नुकसानदेह है। असल में भारत आज एक औऱ हमले से पस्त हो चुका है वह है सरकार प्रायोजित शराब हमला। आज चर्चा इम्यूनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की हो रही है क्योंकि कोरोना इसी सिस्टम को ध्वस्त करता है।लेकिन हमें यह देखना होगा कि कैसे हमारे देश में आम आदमी की इम्युनिटी खत्म करने पर सरकारें तुली हुई है।शराब से कमाई के लालच में हर राज्य अपने ही नागरिकों को मौत के मुंह मे धकेल रहे है।लाखों करोड़ के इस सरकारी खेल में सभी दल भी बराबरी से निर्वस्त्र है।मप्र औऱ हरियाणा में अब आप घर बैठे ऑनलाइन शराब मंगा सकते है।मप्र सरकार शराब से इस बर्ष 12 हजार औऱ हरियाणा 7.5हजार करोड़ राजस्व जुटाएंगी। दोनों ही राज्यों में इस प्रावधान को लेकर विरोध हो रहा है।।मप्र की कमलनाथ सरकार  ने तो एक औऱ निर्णय किया था इसके तहत महिलाओं के  लिए बड़े शहरों में शराब की अलग से दुकानें खोली जाएंगी।इन दुकानों पर मुंबई,दिल्ली कोलकाता जैसे बड़े शहरों में मिलने वाली ब्रांडेड शराब उपलब्ध होगी। फिलहाल देश मे  लगभग 2 फीसदी महिलाएं शराब का सेवन करती है।कमलनाथ के इस  निर्णय की  तीखी आलोचना हुई थी लेकिन नए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अभी तक इसे निरस्त नही किया है।
इधर केंद्रीय बजट में  इस साल नशामुक्ति कार्यक्रम के लिए पहली बार 260 करोड़ का प्रावधान किया गया है।भारत मे शराब से हर 90 मिनिट पर एक नागरिक की मौत हो जाती है।करीब एक लाख मौत तो शराब पीकर गाड़ी चलाते समय  निर्दोष राहगीरों औऱ चालकों की हो रही है।सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार  इस समय16 करोड़ नागरिक नियमित रूप से शराब पी रहे है।चरस,अफीम,गांजा,भांग,सिगरेट का नशा करने वाले भारतीयों की संख्या जोड़ दी जाए तो वह करीब 15 करोड़ औऱ होगी।एम्स औऱ  नेशनल ड्रग डिपेंड़स ट्रीटमैंट सेंटर द्वारा तैयार इस शोध में शराब पीने वाले भारतीयों की आयु 10 से 70 सर्वेक्षित की गई है।16 करोड़ शराब पीने वालों में से 6.7 करोड़ तो आदतन यानी एडिक्ट है। 5.7करोड़ भारतीय इस वक्त शराब जनित रोगों से ग्रस्त है।एक तरफ प्रधानमंत्री फिट इंडिया अभियान पर काम कर रहे है दूसरी तरफ भारत में शराब मार्केट सबसे तेज  8.8फीसदी की दर से बढ़ रहा है ।अनुमान है  2022 में 16.8बिलियन लीटर शराब की खपत भारत मे होगी।सवाल यह है कि क्या राज्य सरकारें चुनावी वादों की पूर्ति के लिए अपने ही नागरिकों के जीवन को दांव पर नही लगा रही है?नजीर के तौर पर मप्र में 2003 में शराब का राजस्व 750 करोड़ था जो इस बर्ष 12 हजार करोड़ हो गया है।इसी साल महाराष्ट्र सरकार  17477,छत्तीसगढ़ 4700,यूपी 23918,तमिलनाडू 31157,आंध्र प्रदेश 6222 की कमाई अपने ही नागरिकों को शराब परोसकर कर चुकी है।यूपी में 4.20,मप्र में 1.20बंगाल में 1.40करोड़ लोग शराब पी रहे है। यह नमूना समंक बताते है की सरकारी स्तर पर शराब बेचने के लिए हमारी सरकारें कितनी शिद्दत से जुटी है।भारत में सेवन की जानी वाली शराब में  90 फीसदी हार्ड अल्कोहल होता है जो वैश्विक मानक औऱ प्रचलन के 44 फीसदी की तुलना में  ज्यादा खतरनाक है।यूरोप की तरह शराब का मतलब हमारे यहां वाइन या बीयर भी नही है ।बल्कि हार्ड ड्रिंक शराब पीते है भारतीय जो शरीर को अंदर से खोखला कर देती है। जो कैंसर, सिरोसिस सहित करीब 200 तरह की गंभीर बीमारियों की जनक भी है ।डब्लू एच ओ की रिपोर्ट कहती है कि एक दशक में भारत मे शराब की खपत दोगुनी हो गई है।2005 में प्रति व्यक्ति यह 2.4लीटर थी जो 2016 तक 5.7लीटर हो गई।भारत दुनिया का तीसरा सर्वाधिक शराब सेवन वाला देश है।सरकारी सर्वे के इतर करोड़ों लोग ऐसे भी है जो परम्परागत तरीकों से बनी शराब का सेवन कर रहे है खासकर वनांचल में ताड़ी,खजूर,गुड़,यहां तक कि मानव मूत्र से बनने वाली शराब इसमें शामिल है।शराब केवल सरकारी राजस्व तक का मामला नही है असल मे यह नेताओं, अफसरों और माफिया के गठजोड की सम्पन्नता का माध्यम भी है।जितना राजस्व सरकारी खजानों में दिखता है कमोबेश उतना ही इसके खेल में  अवैध रूप से भी बनता है। सीएजी की एक हालिया रिपोर्ट में यूपी में मायावती औऱ अखिलेश के कार्यकाल में करीब 25 हजार करोड़ की चपत का खुलासा हुआ है।यह रकम डिस्लरीज औऱ बड़े सिंडिकेट ने शराब के दाम अवैध रूप से बढाकर जनता से वसूल ली लेकिन खजाने में जमा नही हुई।यही खेल देश के सभी राज्यों में सुगठित ढंग से चल रहा है।सरकार बदल जाती है लेकिन माफिया नही।
प्रश्न यह है कि आखिर हम अपनी ही नीतियों से मुल्क को कहां ले जा रहे है?1929 में महात्मा गांधी ने हरिजन में लिखा था कि 'अगर कोई उनसे स्वराज और शराबबन्दी में से एक चुनने का विकल्प दे तो मैं पहले शराबबन्दी को चुनूँगा'पूरा देश आज बापू की 150 वी जयंती मना रहा है।क्या गांधी के प्रति हमारी यही वैचारिक प्रतिबद्धता है। आज भारत को हमने वैश्विक शराब बाजार में तब्दील कर दिया।संविधान के अनुच्छेद 47 में जो नैतिक आदेश सरकार को मिले है क्या उनके प्रति कोई नैतिक जबाबदेही  नही है संविधान की शपथ उठाने वालों की?
बेहतर होगा 5 ट्रिलियन के आर्थिक लक्ष्य को आगे रखकर हम एक राष्ट्रीय शराब नीति का निर्माण करें।चरणबद्व तरीक़े से शराब के प्रचलन औऱ कारोबार को घटाने के प्रयास करें।लाखों करोड़ के राजस्व में से  स्थानीय खनिज निधि की तरह हर जिले में राजस्व का एक चौथाई हिस्सा नशामुक्ति केंद्रों या वेलनेस सेंटर के लिये आरक्षित कर दें।क्योंकि छतीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य में आज 35 फीसदी लोग शराब पी रहे है।रांची के पास 900 की आबादी वाले ब्राम्बे गांव को शराब ने  विधवा ग्राम में बदल दिया। बेहतर होगा शराब की बिक्री को हतोत्साहित करने के लिये सामाजिक माहौल भी बनाया जाए।क्योंकि पिछले दो दशकों में युवाओं में इसका चलन तेजी से बढ़ा है।भारत में विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या इस समय है और शराब की आदी हमारी युवा पूंजी फिट इंडिया या स्किल इंडिया के लिये कैसे परिणामोन्मुखी हो सकती है?पूरी दुनिया जब योग पर अबलम्बन की ओर है और यूरोप में 2010 के बाद शराब की खपत 10 फीसदी कम हो गई है तब भारत मे यह  खपत दोगुनी हो जाना हमारी सामूहिक चेतना, हमारी विरासत हमारे मर्यादित जीवन को कटघरे में खड़ा करता है।शराबबंदी लागू कर आबकारी राजस्व केंद्र से समायोजित करने का जो सुझाव दिया  जाता है उस पर भी बिहार,गुजरात मॉडल के आलोक में नीतिगत निर्णय लिया जा सकता है।कोरोना पर लाखों करोड़ खर्च करने के बाद क्या सरकारें आरोग्य भारत के लिए शराबबंदी करने की हिम्मत करेंगी ? यह नेताओं,अफसरों,ठेकेदारों के नेक्सस के लिए बड़ा कठिन है पर मोदी है तो मुमकिन है इसकी भी परीक्षा इस प्रस्ताव से हो सकती है।