तोमर/तँवर राजवंस कुलदेवी ऐसाहगढ़ी
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जिला मुरैना(पूर्व का जिला तंवरघार) कभी तंवरघार की सीमाओ निर्धारण चम्बल की धार नहीं बल्कि उसके घनत्व से हुआ करता था। पूर्वी राजस्थान जिला धौलपुर से सटी चम्बल की हरियल धार और मध्यप्रदेश की किनारी पर बसे ऐसाह गाँव से कुछ ही दुरी पर स्तिथि हे 12 वी सदी कालीन महाराज अनंगपाल सिंह द्वितीय द्वारा स्थापित तोमरराज वंस की कुलदेवी माँ योगेश्वरी चिल्लाय माता का मन्दिर जो पुरातन कालीन मन्दिर के भग्नावेशो से थोड़ा पहले हैं। 12 वी सदी का मन्दिर और किला चम्बल की अशेष जलराशि में कहि बिलुप्त हो चुका है किन्तु किनारे कुछ अवशेष आज भी विद्यमान हे जो इसकी भव्यता की दास्ताँ खुद व्यान करते हैं।
इस स्थान को इसकी विशेष आकृति के कारण "भवेश्वरी" भी कहते हैं। यंहा चम्बल की बीच धार प्राकतिक रूप से एक हरा-भरा टापू निर्मित करती हे। जिसकी आकृति स्टेलाइट व्यू अथवा वायुयान से देखने पर स्त्री योनि की आकृति सुस्पष्ट करता हे। जो माँ कामख्या देवी की ही द्वितीय कृति है ।
लोकश्रुतियो और इतिहास का अध्यन करने पर ज्ञात होता हे की 'ऐसाहगढ़' स्तिथि बट वृक्ष के नीचे ही तोमरवंस के गुम हुए मदनायक (कोहिनूर) हीरे की पुनर्प्राप्ति महाराज अनंगपाल को यहीं हुई थी। यह वही हीरा हे जो महाभारत काल में उर्वसी अप्सरा द्वारा अर्जुन को भेंट किया गया था और तन्त्र से अभिमन्त्रित महरौली स्तिथि किल्ली को हिलाते ही गायब हो गया था।
बुजुर्ग कहते हैं तोमरों के दिल्लीच्युत होने के बाद। ऐसाह को दूसरे गढ़ के रूप में स्थापित कर शाशन व्यवस्था पुनर्स्थापित की गयी और राव घाटम देव के 84 गाँव राव वीरमदेव के द्वारा 52 और 120 गाँवों की नीव रखकर 'तंवरघार' की नीव रखी गयी। वस्तुतः यह परिहार/प्रतिहार राजाओ का भूभाग था जो प्रतिहार कुमारी धारावती से राव वीरमदेव के विवाह उपलक्ष्य में सप्रेम भेंट स्वरूप प्राप्त हुआ था ।
योगेश्वर श्रीकृष्ण जी बहिन योगमाया के कारण कुलदेवी का नाम योगेश्वरी,भगेश्वर टापू के कारण यह तीर्थ भवेश्वरी और चील पक्षी की सवारी के कारण इन्हें चिल्लाय माता,कंस के समक्ष स्वम को योगमाया उच्चारित करने कारण मंशादेवी व सरुण्ड माता के नाम भी जानते हैं ।
मन्दिर से चम्बल तक जाने के लिए पक्की सिंढीया और नीचे माँ गंगा का प्राकृतिक उद्गम कलकल निनादित है। यंहा महिलाओ के स्नान के प्राकृतिक झरने का एक कक्ष रूप स्नानागार हैं तथा पुरुषो के लिए गोमुख झरना अपनी अलग ही छटा विखेरता हैं। यही से आप भवेश्वरी पर्वत को निहार व नोका विहार कर सकते हैं।
जलराशि में तैरते सेकडो घड़ियाल और मगर आपका मन मोह लेंगे तो हजारो प्रवासी पक्षीयो का कलरव यंहा की छटा को और दर्शनीय बना देता हे ।
यु तो यंहा प्रतिदिन उप्र, राज,मप्र से आते सेकडो श्रद्धालुओं द्वारा प्रसादी-भण्डारण होते रहते हैं किंतु प्रतिवर्ष 18 जून को हल्दीघाटी के शहीद तोमरकुल की तीन पीढ़ियों की स्मिर्ती में विशेष आयोजन 'तंवरघार एकता मंच' के तत्वाधान में होता है ।
यंहा की विशेषता है की चंद्रवंस,तँवर कुल देवी ध्वजा के ऊपर आकाशगंगा में कोई भी तिथि हो कोई भी प्रहर हो 'चन्द्र देव' सदा सर्वदा दर्शन किये जा सकते हे और यंहा स्नानुपरांत भोजन ग्रहण कर व माँ की आराधना करके इच्छित फल की प्राप्ति होती हे ...!
तो आइये आगामी 14 जनवरी 2020 मकर संक्रांति पर्व पर महाप्रयाण हुए पितामह देववृत 'भीष्म' को नमन कर श्रधांजलि अर्पित करने माँ कुल देवी योगेश्वरी चिल्लाय भवानी के सानिध्य में धर्म लाभ अर्जित करें !
*कुं.जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'*
तंवरघार एकता मंच परिवार
तंवरघार स्टेट, चम्बल ग्वालियर