“तानाजी:- दी अनसंग वॉरियर”(फ़िल्म रिव्यू)
मुझे इस फ़िल्म से काफी उम्मीदें थी,
लेकिन ये फ़िल्म इतनी ज्यादा बेहतर होगी,
ये नहीं सोचा था,
इसे रिव्यू करने से पहले,
मैं ‘अजय देवगन’ और फ़िल्म के डायरेक्टर ‘ओम राउत’ को सैल्यूट करना चाहूँगा,जिन्होंने बिना किसी सेक्युलर बैलेंसिंग के.,उस समय की परिस्थितियों और घटनाओं को फ़िल्म में जस का तस रखा,
फ़िल्म में कहीं पर भी,
बिना मतलब का सेक्युलरिज़्म घुसेड़कर,असली कहानी से लीपापोती नहीं की गई,ऐसे साहसिक कदम के लिए ‘अजय देवगन’ और उनके टीम की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है,
फ़िल्म का एक सीन जहाँ...,(नॉन स्पॉइलर)
‘तानाजी’ कौंढाना के कुछ स्थानीय लोगों में उत्साह भरने के लिए कहते हैं
“वैसे भी कहाँ जीवित हो तुमलोग,
तुम्हारी माँ-बहनें दिन में घर से बाहर नहीं निकल सकती,तुम्हारे जानवर तुम्हारे सामने से लूट लिए जाते हैं...,ब्राह्मण पूजा पाठ नहीं कर सकता,किसान खेती नहीं कर सकता मुर्दे को श्मशान ले जाते हुए तुमलोग जोर से ‘श्री राम’ तक नहीं बोल सकते,"
इस तरह के सीन्स देखकर साफ पता चलता है कि ये फ़िल्म क्या कहना चाहती है,
फ़िल्म की एक बात और बेहतरीन लगी कि,
इस फ़िल्म में तानाजी के अलावा बाकी के किरदारों के साथ भी पूरी तरह से न्याय किया गया है,
ख़ासकर ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ का चित्रण गज़ब का है,
एक्टिंग:-
‘अजय देवगन’ की ये खासियत है कि,
वे किसी भी किरदार में एकदम आसानी से ढल जातें हैं,तानाजी के किरदार को इतनी सरलता से सिर्फ अजय देवगन जैसा एक्टर ही निभा सकता है,
‘उदयभान’ के किरदार को ‘सैफअली खान’ ने जी लिया है ,सैफ की मुस्कान,आँखों में सूरमा,
और डायलॉग्स बोलने का अंदाज़,आपको उदयभान से नफ़रत करने को मजबूर और साथ ही साथ सैफ का दीवाना कर देगा,
‘काजोल’ के सीन्स कम हैं,
लेकिन जितने भी हैं काफी इम्पैक्टफुल हैं ,उनके लिए डायलॉग अच्छे लिखे गए हैं,और उनका मराठी बोलने का लहजा गज़ब का है,जिससे डायलॉग्स में चार चाँद लग जाते हैं,
‘शिवाजी राजे’ के किरदार में,
‘शरद केळकर’ को देखने के लिए मैं सबसे ज्यादा उत्सुक था...,और उन्होंने जो काम किया है
जब भी ‛शिवाजी राजे’ को बड़े पर्दे पर देखने का जिक्र किया जाएगा, ‘शरद केळकर’ का नाम जरूर आएगा , उन्होंने ग्वालियर के सिंधिया स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की है अभिनय के क्षेत्र में वो एक परिपक्व अभिनेता माने जाते हैं
शरद की आवाज़ और उनकी पर्सनालिटी ने शिवाजी राजे के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है
डायलॉग्स:-
ऐतिहासिक फिल्मों में डायलॉग्स के काफी महत्व होते हैं, क्योंकि इसतरह की फिल्में कुछ संदेश देना चाहती हैं, और ये फ़िल्म इस मामले में जरा सा भी नहीं चूकती,
‘शिवाजी राजे’ और ‘तानाजी’ के बीच के डायलॉग्स इतने डीप और पॉवरफुल हैं कि
उन सीन्स को देखकर आंखे भर जाती हैं,ऐसा लगता है मानों ये घटना आपके सामने ही हो रही है
कुछ डायलॉग्स ऐसे हैं,
जो बयान करते हैं कि...,शिवाजी राजे भोंसले मराठाओं/हिंदुओं के लिए इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं,और महाराष्ट्र में उन्हें भगवान की तरह क्यों पूजा जाता है,
एक्शन & VFX:-
इसतरह की पीरियड फिल्मों में एक्शन को दिखाना आसान काम नहीं है,यही वजह है कि आमतौर पर ऐसी फिल्मों के एक्शन सीन्स में कई लूप होल्स देखे जा सकते हैं,उदाहरण के तौर ओर जल्द ही आई पानीपत फ़िल्म में,
लेकिन इस फिल्म में ऐसा नहीं है...,
इसका एक्शन एक अलग ही लेवल का है,इसमें कहीं से भी कोई कमी नहीं मिल पाएगी,एक्शन के एक एक फ्रेम को बहुत बढ़िया तरीके से डिज़ाइन किया गया है,
इससे पहले ‘उरी:- दी सर्जिकल स्ट्राइक’ में ऐसा देखा वेल कोरियोग्राफ्ड एक्शन देखा गया था,
‘अजय देवगन’ का एंट्री सीन ही पैसा वसूल कर जाता है,
VFX की खास बात ये है कि,
सारे VFX के सीन्स इंडियन आर्टिस्ट द्वारा ही मुंबई के एक स्टूडियो में बनाए गए हैं,एकाध सीन्स को छोड़ दें तो इस फ़िल्म का VFX कहीं से भी कमजोर नहीं लगता,
वाकई VFX आर्टिस्ट ने शानदार काम किया है,
बैकग्राउंड म्यूजिक:-
अगर एक ऐतिहासिक किरदार के साथ,
एक जबरदस्त धुन जुड़ जाय तो लोगों के जहन में वो किरदार काफी समय तक जीवित रहता है,
इस फ़िल्म में बैकग्राउंड में बजता हुआ ‘रारारा रारारा रारारा’ दर्शकों के दिल में ‘तानाजी’ के लिए एक अलग ही थ्रिल पैदा करता है,
‘अजय अतुल’ का म्यूज़िक शानदार है,
ये फ़िल्म अपने सब्जेक्ट ही नहीं,
बल्कि इसके हर एक टेक्निकल एस्पेक्ट्स पर भी पूरी की पूरी खरी उतरती है,
ऐसी फिल्म अपने आप में एक फेस्टिवल है,
जिसे बड़े पर्दे पर 150-200 लोगों के बीच देखने का अलग ही मज़ा है,
यार दोस्त,बच्चे बुज़ुर्ग,फैमिली या रिलेटिव्स,
जिसे चाहें उसे साथ ले जाएं लेकिन फ़िल्म एकबार ज़रूर देखकर आएं !
रिव्यू लेखक
आर्या नितिन तिवारी मुंबई से