नारी शक्ति और पुरुष के बीच में संतुलन संवन्वय बहुत जरूरी है

 


स्त्री पुरुष के मध्य संतुलन संवन्वय बहुत जरूरी है


जब सृष्टि की रचना हुई। स्त्रियों को बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई... जननी की, अजन्में शिशु को कोख में रखकर अपने लहू से सींचकर तमाम पीड़ा उठाने के बाद वो उसे जन्म देती है। पालन-पोषण करती है।
इस स्त्री की सुरक्षा के लिए पुरुषों को बनाया उन्हें शक्ति प्रदान की।उन्हें रक्षक बनाया। 
प्रकृति का नियम है हर जीवित रचना में मादा ही  बच्चे को जन्म देती है नर नहीं।
नवजात को जन्म देने, उनके पालन-पोषण हेतु सब तकलीफें उठाने के लिए कोमल, निष्काम भावनाएं चाहिए। इसलिए स्त्री मन से सदैव कोमल और भावनाओं की धनी रही। पुरुषों की ज़िम्मेदारी रही उन्हें भोजन और सुरक्षा प्रदान करवाना। लेकिन धीरे-धीरे पुरुषों ने जो शारीरिक रूप से महिलाओं से ज़्यादा बलिशाली थे क्योंकि वो स्त्रियों के रक्षक थे इसलिए होना भी था। वे बाहर निकलकर आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाने लगे, घर-परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी स्त्रियों की रही। समय गुज़रता रहा गुज़रते समय के साथ पुरुषों में छल आने लगा वो आर्थिक रूप से मजबूत हुए तो स्त्रियों का शोषण करने लगे। कुछ तो उन्हें दास समझने लगे। 
जब सब कुछ बर्दाश्त करना स्त्री की सहनशक्ति के बाहर हो गया उसने भी आर्थिक स्थिरता और दूसरों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से घर की चार दीवारी से बाहर क़दम निकाले।
उसकी सुरक्षा का घेरा अपने आप कम हो गया। वो पुरुष जो अपने घर बैठी स्त्री को ही कुछ नहीं समझता था लेकिन नाम के लिए उनका रक्षक था दूसरी स्रियों के लिए भक्षक बन बैठा।
स्त्री जाति जो उनकी जननी भी है को मात्र भोग की वस्तु बना दिया।
स्रियों को सदियों से मुनासिब सम्मान न मिलने और शोषण होने से अब संतुलन बहुत गड़बड़ा गया है।  
अगर स्रियों को उचित सम्मान न मिला पुरुषों का उनकी ओर देखने का नज़रिया न बदला तो संतुलन और बिगड़ेगा और एकदिन प्रलय आकर ही पुनः संतुलन स्थापित करेगी।
इसकी ज़िम्मेदार समूची मानव जाति होगी। 
स्त्री-पुरुष दोनों के अपने-अपने गुण, साथ ही कुछ उत्तरदायित्व भी हैं हमें एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए, दोनों के बराबर महत्व को समझना चाहिए ये संतुलन बना रहना चाहिए तभी सबकी उन्नति है।


लेखिका
कुसुम गोस्वामी "किम"